विदेश में पढ़ाई का ट्रेंड बढ़ा भारतीय छात्रों 18 लाख पार, जानिए 5 वजहें जो विदेशी डिग्री बनी पहली पसंद Indian Students Abroad

By Priya

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Indian Students Abroad

Indian Students Abroad : आज के समय में विदेश में पढ़ाई करना भारतीय छात्रों के बीच एक बड़ा ट्रेंड बन चुका है। विदेश मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2025 में विदेशों में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों की संख्या 18 लाख को पार कर चुकी है। जबकि दो साल पहले तक यह संख्या लगभग 13 लाख थी। यानी सिर्फ दो वर्षों में विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 5 लाख की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा न सिर्फ छात्रों की विदेश में पढ़ाई को लेकर दिलचस्पी को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारत में उच्च शिक्षा को लेकर प्रतिस्पर्धा कितनी ज्यादा है।

किन देशों में सबसे ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं?

जब यह सवाल उठता है कि भारतीय छात्र सबसे ज्यादा किन देशों में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं, तो इसका जवाब है – अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम (यूके)। विदेश मंत्रालय के अनुसार, अमेरिका में फिलहाल 331,602 भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं, कनाडा में 137,608 और यूके में 98,890 भारतीय छात्र हैं। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, आयरलैंड, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और यूक्रेन जैसे देशों में भी भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

आखिर क्यों बढ़ रही है विदेश में पढ़ाई की चाह?

विदेश में पढ़ाई करने की कई अहम वजहें हैं, जो भारतीय छात्रों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं।

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1. सीमित सीटें और भारी प्रतिस्पर्धा

भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम और एम्स में दाखिला पाना हर छात्र का सपना होता है। लेकिन इन संस्थानों में सीटों की संख्या बहुत कम है और प्रतियोगिता बहुत अधिक है। ऐसे में कई प्रतिभाशाली छात्र विदेश की यूनिवर्सिटियों में दाखिले का विकल्प चुनते हैं, जहां उन्हें अच्छी क्वालिटी की शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं मिलती हैं।

2. बेहतर करियर अवसर

विदेश में पढ़ाई करने के बाद छात्रों के लिए इंटरनेशनल लेवल पर करियर के अवसर खुलते हैं। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा और परमानेंट रेजिडेंसी जैसे विकल्प भी उपलब्ध कराते हैं, जिससे छात्रों को पढ़ाई के बाद वहीं बसने का अवसर मिल जाता है। यह एक बड़ी वजह है कि छात्र विदेश में पढ़ाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।

3. सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

कई यूरोपीय देशों में भारत की तुलना में कम खर्च में शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर जर्मनी में पब्लिक यूनिवर्सिटीज में ट्यूशन फीस नहीं ली जाती। फ्रांस और इटली जैसे देशों में रहने और खाने का खर्च भी कम होता है। इसके चलते मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार भी अब अपने बच्चों को विदेश भेजने में सक्षम हो रहे हैं।

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4. स्कॉलरशिप और फाइनेंशियल सपोर्ट

ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की कई यूनिवर्सिटीज भारतीय छात्रों को स्कॉलरशिप प्रदान करती हैं। इससे न केवल पढ़ाई का खर्च कम होता है, बल्कि छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा हासिल करने का भी मौका मिलता है। इसके अलावा, कुछ देशों की सरकारें भी विदेशी छात्रों के लिए विशेष स्कॉलरशिप प्रोग्राम चलाती हैं।

5. ग्लोबल एक्सपोजर और पर्सनल ग्रोथ

विदेश में पढ़ाई करने से छात्रों को अलग-अलग संस्कृतियों को जानने और समझने का मौका मिलता है। इससे उनकी सोच में व्यापकता आती है, कम्युनिकेशन स्किल बेहतर होती है और वे वैश्विक स्तर पर नेटवर्क बना पाते हैं। ग्लोबल एक्सपोजर छात्रों को न केवल प्रोफेशनली मजबूत बनाता है, बल्कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी विकसित करता है।

भविष्य की संभावनाएं

भारतीय छात्रों का विदेश में पढ़ाई के लिए बढ़ता झुकाव यह दर्शाता है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या और बढ़ सकती है। भारत में जहां शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, वहीं विदेश की यूनिवर्सिटीज लगातार भारतीय छात्रों को आकर्षित करने के लिए स्कॉलरशिप, वीजा में सहूलियत और करियर गाइडेंस जैसे विकल्प उपलब्ध करा रही हैं।

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हालांकि, विदेश में पढ़ाई करना आसान नहीं होता। वहां की भाषा, संस्कृति, मौसम और जीवनशैली को अपनाना एक चुनौती होती है। लेकिन जो छात्र इन चुनौतियों का सामना करते हैं, उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करियर के बेहतरीन अवसर मिलते हैं।

निष्कर्ष

विदेश में पढ़ाई करना अब केवल एक ट्रेंड नहीं रहा, बल्कि यह एक रणनीतिक कदम बन गया है। सीमित संसाधनों, कड़ी प्रतिस्पर्धा और करियर की ऊंची उड़ान की चाह ने भारतीय छात्रों को वैश्विक शिक्षा की ओर मोड़ा है। आने वाले समय में यह रुझान और तेजी से बढ़ेगा, और भारत दुनिया को और भी ज्यादा प्रतिभाशाली युवा देगा, जो शिक्षा और हुनर के दम पर वैश्विक मंच पर देश का नाम रोशन करेंगे।

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